मेरे पापा ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। मै भी देश का बेटा हूं - किंग खान (सहरुख खान )

 वह कहते हैं, माता- पिता से जुड़ी यादों को बयां करने जाउं तो मुझे एक किताब लिखनी पड़ेगी।
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वह किंग खान हैं। पिछले दिनों उन्होंने अपना जन्मदिन बहुत खामोशी से मनाया। उनसे जुड़ी बातों और गॉसिप का कोई अंत नहीं। उनके जीवन का अंदाज भी वैसा ही है। जाहिर है, कई बार उनकी बातों में एक दोहराव साफ झलकता है। लेकिन अभिनेता शाहरुख के अंदर एक व्यक्ति शाहरुख भी शिद्दत से मौजूद है। जो कई बार फुरसत में उन दिनों को याद करता है, जब शाहरुख, किंग खान नहीं बल्कि एक आम युवक थे।खास तौर से अपने माता- माता से जुड़ी यादों को वह अक्सर बयां करते हैं। वह कहते हैं, माता- पिता से जुड़ी यादों को बयां करने जाउं तो मुझे एक किताब लिखनी पड़ेगी। मेरे पिता का नाम मीर ताज मोहम्मद था। वो स्वतंत्रता सेनानी थे। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। पापा के जुबान से शहीद खुदीराम बोस की कहानी सुनी है। उनकी कहानी सुनाते समय पापा बहुत उत्तेजित हो जाते थे।मात्र 19 साल की उम्र में खुदीराम देश के लिए फांसी पर चढ़ गए। गांधीवादी होने के बावजूद पापा क्रांतिकारियों की बहुत श्रद्धा करते थे। देश के प्रति वचन बद्धता क्या होती है, यह मैंने पापा से सीखा है।
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' 1981 में जब पापा की मृत्यु हुई, तो शाहरुख बहुत छोटे थे। दीदी उनसे थोड़ी बड़ी थी। उनकी मां बहुत सख्त मन की महिला थी। शाह -रुख के मुताबिक किसी भी तरह के दुख- कष्ट में उन्होंने अपनी मां को टूटते हुए नहीं देखा है। वह मजिस्ट्रेट थी।पापा की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने अकेले दमखम पर दोनों बच्चों का लालन-पालन किया। उनके अभिनय के शौकसे मम्मी-पापा दोनों ही वाकिफ थे। पापा.के इंतकाल के बाद उनके इस सौख के बाद मां ने बहुत प्रोत्साहित किया बाद मै उनके कुछ एक प्ले और उनके पहले टीवी सीरियल फौजी को मां ने देखा था।शाहरुख को हमेशा यह दुख सालता है कि बतौर हीरो वह उनकी कोई फिल्म नहीं देख पाई। यह बात उन्हें हमेशा कचोटती है।' वह आगे बताते हैं, 1991 में पापा की तरह मां भी हमें छोड़कर चली गई। उस समय पापा-मम्मी किसी के भी मरने की उम्र नहीं हुई थी। मां जब तक जीवित थीं, हमारे घर में हर तरह के निर्णय मां ही लेती थीं। आज भी हम कोई भी निर्णय लेने से पहले उस कमीको शिद्दत से महसूस करते हैं।'

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